“गरीबो को शिक्षित करना शायद ही इससे बड़ा कोई पुण्य हो। कहते है न जिसका कोई नहीं उसका भगवान होता है, तो आज हम आपको ऐसे ही व्यक्ति के बारे में बताते है जिन्होंने उत्तराखंड की तकदीर को बदलने के लिए ये शख्स प्रत्येक सप्ताह गुड़गांव से उत्तराखंड यानि 600 किलोमीटर तक का सफर तय करते हैं।”

गांव के बच्चों को पढ़ाने के लिए हर हफ्ते गुड़गांव से उत्तराखंड का सफर करते हैं आशीष डबराल।

Ashish Dabral teach village Children : आज के दौर में अमीरो के बच्चो के लिए, जहा एजुकेशन का स्टैंडर बढ़ रहा है, वही गरीबो के लिए शिक्षा का कोई महत्त्व नहीं रह गया है। किसी भी सरकार का सरकारी स्कूलों की तरफ कोई ध्यान नहीं है। सरकार की तरफ से गरीबो के लिए शिक्षा केवल कागजी बाते ही है। परन्तु ऐसे माहौल में भगवान् हमें ऐसे लोगो से मिलवा ही देता है, जो गरीबो की मदद के लिए पीछे नहीं हटते।

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शिक्षा देना शुरू से ही हमारे समाज में सम्मानीय रहा है। गरीबो को शिक्षित करना शायद ही इससे बड़ा कोई पुण्य हो। कहते है न जिसका कोई नहीं उसका भगवान होता है, तो आज हम आपको ऐसे ही व्यक्ति के बारे में बताते है जिन्होंने उत्तराखंड की तकदीर को बदलने के लिए ये शख्स प्रत्येक सप्ताह गुड़गांव से उत्तराखंड यानि 600km. तक का सफर तय करते हैं।

MNC में कार्यरत आशीष।

जी हां, ये शख्स और कोई नहीं बल्कि आशीष डबराल हैं जो एक ब्रिटिश टेलीकॉम कंपनी में प्रोजेक्ट मैनेजर के पद पर तैनात है। शिक्षा की दयनीय स्थिति को देखते हुए वह प्रत्येक हफ्ते गुड़गांव से उत्तराखंड तक का सफर तय करके वहां रहने वाले पिछड़ी जाति व गरीब बच्चों को मुफ्त शिक्षा देते हैं। आशीष डबराल के इस कार्य को देखने के बाद उनकी कंपनी ने भी उनका पूरा सहयोग दिया।

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“29 फरवरी को आयोजित लंदन के एक कार्यक्रम में उनको विश्व के सभी कर्मचारियों में से उनके सोशल वर्क के आधार पर वालंटियर ऑफ़ द ईयर भी चुना गया।“

सन 1882 में उनके दादा जी के दादा जी जिन का नाम बद्रीदत्त डबराल था उत्तराखंड के गांव में एक विद्यालय की नींव रखी थी। जिसका नाम श्री तिमली संस्कृत पाठशाला था। जिसे उनके परिवार वालो ने ब्रिटिश शासन काल में सरकार से संबंध स्थापित कर ब्रिटिश सरकार से विध्यालय की मान्यता ली।

समय की मार से स्कूली शिक्षा खत्म होने पर।

उस दौरान वहां के लोग काफी उत्साहित थे, और सभी अपने अपने घरों में से बच्चों को पढ़ाने के लिए भेजते थे परंतु काफी सालों बाद आशीष डबराल को ये पता चला कि स्कूल अब बुरी अवस्था में पहुंच गया है, क्योकि रोजगार न होने के कारण वहा से काफी परिवार पलायन कर चुके है और कई ऐसे गांव है जो की पूरी तरह से खाली हो चुके है।

अब वहा पढ़ने वाले कोई भी नहीं बचा है। आशीष के गांव के अलावा अन्य गांव को मिला कर मात्र तीन चार बच्चे मुश्किल से पढ़ने के लिए आते हैं। तब उन्होंने वहां अपने परिजनों की सहायता से एक कंप्यूटर सेंटर खोला जिसका नाम “द यूनिवर्सल गुरुकुल” रखा।

आशीष डबराल का मुख्य उद्देश उत्तराखंड के तिमली जिला गढ़वाल में रहने वाले गरीब व पिछड़ी जाति के लोगों के बच्चों को शिक्षित करके उनके लिए एक सुनहरा भविष्य बनाना है। आशीष ने कंप्यूटर सेंटर की शुरुवात करने से पहले काफी नौकरिया बदली और शुरुवात के लिए रुपयों का इंतजाम किया। आशीष 2013 में गुड़गांव में शिफ्ट हुए फिर पत्नी और भाई की मदद से अपने गांव में सन 2014 में कंप्यूटर सेंटर की शुरुवात हो पाई।

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कंप्यूटर के लगाव के चलते।

यहाँ गांव तिमली और आस-पास के सभी गांव के बच्चे कंप्यूटर सीखने आते है। जहां उन्होंने कंप्यूटर एकेडमी के द्वारा करीब 70 से अधिक छात्रों को कंप्यूटर की शिक्षा दी। आशीष डबराल  का मकसद बच्चों को शिक्षित करने के अलावा वहाँ रोजगार के जरुरत को पूरा करना है। ताकि वहाँ के गांवो से पलायन रोक सके।

आशीष डबराल तिमली-पॉढी जिले के मूल निवासी हैं। गरीब और पिछड़े वर्ग के बच्चों को पढ़ाने के लिए आशीष डबराल प्रत्येक सप्ताह 20 घंटे तक गुडगांव से उत्तराखंड तक का सफर तय करते हैं।

आशीष डबराल का मुख्य उद्देश उत्तराखंड के तिमली जिला गढ़वाल में रहने वाले गरीब व पिछड़ी जाति के लोगों के बच्चों को शिक्षित करके उनके लिए एक सुनहरा भविष्य बनाना है। आशीष ने कंप्यूटर सेंटर की शुरुवात करने से पहले काफी नौकरिया बदली और शुरुवात के लिए रुपयों का इंतजाम किया। आशीष 2013 में गुड़गांव में शिफ्ट हुए फिर पत्नी और भाई की मदद से अपने गांव में सन 2014 में कंप्यूटर सेंटर की शुरुवात हो पाई।

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उत्तराखंड की सरकार की ओर से सम्मानित।

इंग्लैंड में स्थित कुछ संस्थाएं ऐसी भी हैं जो उनके सेंटर में पढ़ने वाले बच्चों को ऑनलाइन शिक्षा दे रही है। ताकि वहां बच्चो को दुनिया से जुड़ने का मौका मिल सके, तथा अपना व अपने देश का नाम रोशन कर सके।

आशीष डबराल ने अपने गांव के गरीब लोगों के लिए भी ऐसे कुछ काम किए जिससे उन्हें रोजगार मिल सके और अपना तथा अपने परिवार का भरण पोषण कर सकें। अपने मूल निवास गांव के रहने वाले गरीब बच्चों को पढ़ाने का उत्साह देखते हुए उत्तराखंड की सरकार ने आशीष को सम्मानित भी किया।

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अपने गांव की शिक्षा प्रणाली को बेहतर बनाने के उद्देश्य से हर सप्ताह गुड़गांव से टिहरी तक का सफर तय करते है। पुराने समय से अध्यापन का पेशा सबसे उच्च माना गया है क्योंकि माता पिता के बाद ही गुरु ही बच्चों का भविष्य निर्माण करता है इसलिए गुरु को सर्वोच्च स्थान दिया गया है। आशीष डबराल जैसे गुरु जिन्होंने नौकरी के साथ साथ उन गरीब बच्चों की शिक्षा का जिम्मा लिया, जिनको उत्तराखंड सरकार भी शिक्षा के माध्यम से अपना फर्ज ठीक से नहीं निभा पा रही थी।

आशीष की कंपनी ने भी दिया साथ।

आशीष डबराल ने उन सभी बच्चों के लिए ऑनलाइन और ऑफलाइन निशुल्क शिक्षा की व्यवस्था की, जिसके लिए उनकी कंपनी के साथ-साथ कंपनी भी बढ़ चढ़कर हिस्सा ले रही है।

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यदि हमारे भारतवर्ष में ऐसे ही गुरु रहे तो शिक्षा की लौ हमेशा बरकरार रहेगी और हमारा आने वाला भविष्य भी सुनहरा होगा। इनकी जैसी सोच यदि प्रत्येक व्यक्ति के मन मैं आ जाए तो भारत देश जल्द ही विकसित देशों में आ जाएगा।

 


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