कचरा बीनने वाले के बेटे की सफलता की कहानी, AIIMS और NEET परीक्षा पास कर बदली अपनी किस्मत।

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कहते हैं प्रतिभा छिपाये नहीं छिपती क्योंकि प्रतिभा प्रत्येक शख्स के अंदर ही छुपी रहती है। प्रतिभा का धनी व्यकित कभी न कभी सभी की नजरो में आ ही जाता है। इस बात को सिद्ध किया है देवास (मध्य प्रदेश) के रहने वाले आशा राम चौधरी ने। उन्होंने जोधपुर में एम्स का मेडिकल एंट्रेंस एग्जाम पास कर अपने परिवार का सिर गर्व ऊपर उठा दिया है। ओबीसी वर्ग में उनकी रैंक 141वीं आई है। पहले ही प्रयास में एम्स की मेडिकल परीक्षा पास कर जोधपुर एम्स में दाखिला लिया।

कचरा बीनने वाले के बेटे की सफलता की कहानी, AIIMS और NEET परीक्षा पास कर बदली अपनी किस्मत।

success of the trash picker son passed the AIIMS and NEET exam आपको बता दें कि समाज में जितने भी गरीबी बच्चों ने कड़ी मेहनत के द्वारा अपनी पढ़ाई पूरी करके समाज और देश में अपनी एक अलग पहचान बनाई है उन्होंने अपने जीवन की हर परेशानी को पार कर अपना एक अलग रास्ता बना ही लिया है।

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आसाराम ने अपनी खुशी प्रकट करते थे बताया कि,

इस सफलता का श्रेय नवोदय विद्यालय और अपने माता-पिता को देते हैं इसके साथ ही आर्थिक मदद के लिए “दक्षिणा फाउंडेशन” को भी इस सफलता का श्रेय देते हैं। उन्होंने बताया डॉक्टर बनने का सपना तब से है जब मैं पांचवीं कक्षा में पढ़ता था और उस समय उनके गांव में एक शिविर कैंप लगा था और उसमे एक डॉक्टर थे जो गरीबो के दुःख को अपना दुःख समझ के उनकी सहायता कर रहे थे। उनके इस कार्य को देख कर उन्होंने निर्णय लिया की वह भी बड़े हो कर डॉक्टर बन कर हर गरीब और जरूरतमंद का इलाज करेंगे।

बेहद गरीब परिवार से है आशाराम

हम आप को बता दे की आशाराम के पिताका काम करते है। जब आशाराम का एम्स में चयन हुआ तो उन्होंने अपने पिता से कहा की अब आप कचरा बीनने का काम ना करे मै आप के लिए सब्जी की एक दुकान खुलवा दूंगा। जब यह बात उन्होंने, अपने पिता की परेशानी और उनके काम के साथ साथ सब्जी की दुकान खुलवाने की बात सभी के साथ साझा की तो पुरे परिवार के साथ सुनने वालो की आँखो में पानी आ गया। उनके परिवार के लिए वह इस ज़माने के श्रवण कुमार ही है।

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आशाराम के पिता के मुताबिक एम्स की परीक्षा पास करने के बाद जोधपुर में एडमिशन लेने के लिए उनके पास पर्याप्त रुपए नहीं थे और वह लोगों की मदद के लिए उम्मीद लगाए हुए थे।

आशाराम की इस कामयाबी की बात प्रशासन को पता चली तो वह भी उनकी कामयाबी पर मुग्ध हो गए। उनके अनुसार जब यह बात कलक्टर को पता चली तो उन्होंने खुद जोधपुर तक की ट्रेन की टिकट खरीद कर दी और साथ ही अपने एक अधिकारी को उनके साथ भेजा ताकि उन्हें कोई परेशानी न हो और जोधपुर एम्स तक आसानी से पहुंच जाये। मध्य प्रदेश के मुख्यमंत्री शिवराज सिंह ने भी उनकी कामयाबी पर प्रसन्ता जताई और उन्हें बधाई दी है।

उनके खाते में और भी कई तमगे है।

* आशाराम का इसी साल NEET में भी उनका चयन हो गया।

* वह किशोर वैज्ञानिक प्रोत्साहन योजना (KVPY) में रिसर्च साइंटिस्ट के तौर पर चुने जा चुके है।

* उन्होंने जर्मनी के “सिल्वर जोन फाउंडेशन” में 332 वीं इंटरनेशनल रैंक के साथ चयन हो चुका है।

* पुद्दुचेरी के “जवाहरलाल इंस्टिट्यूट ऑफ प्रोग्रेसिव मेडिकल एंड रिसर्च” की प्रवेश परीक्षा में भी उन्हें काफी अच्छी रैंक प्राप्त हुई।

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मेहनत का फल।

वहीं उनके पड़ोसियों ने आसाराम के बारे में बताते हुए कहा कि उनकी झोपड़ी में बिजली की सुविधा नहीं होने पर भी है दिन-रात कड़ी मेहनत और लगन के साथ पढ़ाई किया करते थे आसाराम ने जिस तरीके से अपनी पढ़ाई के लिए मेहनत की है उसके लिए उन्हें इस बात पर गर्व महसूस होता है। वह इस बात पर भी गर्व महसूस होता है कि वह उनके गांव में ही नहीं बल्कि उनके पड़ोसी भी हैं।

आशाराम का परिवार।

मध्यप्रदेश के देवास जिले के विजयगंज मंडी के रहने वाले आशाराम और उनका परिवार एक टूटी फूटी झोपड़ी में रहते हैं जिसमें न तो बिजली का कनेक्शन और न ही शौचालय की सुविधा है। उनके पिता कचरा बीनने का काम करते हैं जबकि मां ममता बाई ग्रहणी हैं। आपका छोटा भाई सीताराम “नवोदय विद्यालय” में कक्षा 12वीं की पढ़ाई कर रहा है और सबसे छोटी बहन नर्मदा अभी नवी कक्षा में पढ़ रही है।

पूरे परिवार का भरण पोषण के लिए पिता की कमाई का एकमात्र स्त्रोत कचरे के बीनने से होने वाली आय से हैं।

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क्या है लक्ष्य।

आशाराम ने अपने जीवन के सपने के बारे में बताया कि वह एक कुशल न्यूरोसर्जन बनना चाहते है। इसके लिए वह MBBS की पढ़ाई करने के बाद मास्टर ऑफ सर्जरी करने का विचार है।

आशाराम ने बताया कि वह MBBS की पढ़ाई पूरी करने के बाद वह न तो विदेश जाने की इच्छा रखते हैं और न ही वहां रहने की इच्छा रखते हैं।

वह अपना सम्पूर्ण जीवन अपने देश और गाँव के लिए समर्पित करने की इच्छा रखते हैं। उनके कहने के मुताबिक वह देवास जिले के अपने गांव विजयागंज मंडी वापस आने के बाद वहां एक बड़ा-सा हॉस्पिटल खोलने की कल्पना करते हैं, जिससे वहां कोई भी व्यक्ति स्वास्थ्य सुविधाओं से वंचित न हो।

प्राथमिक शिक्षा से एम्स तक का सफर।

उनकी शुरू से ही पारिवारिक स्थिति सही नहीं थी। पिता सुबह से ही कूड़ा बीनने निकल जाते थे। और दिन भर में जितना कमा कर लाते उससे ही घर में सभी खाना खाते फिर भी उनके पिता ने कोशिस कर के उनका एडमिशन अपने ही गांव के एक सरकारी स्कूल में करा दिया। चौथी कक्षा तक आते-आते उनका दाखिला दतोत्तर के मॉडल स्कूल में हो गया। उन्होंने अपनी पढ़ाई में कभी भी कमी नहीं आने दी। छठी कक्षा में “जवाहर नवोदय विद्यालय चंद्रकेशर” में उनका दाखिला हुआ।

यही से दसवीं तक की पढ़ाई पूरी की उसके बाद पैसो की तंगी से दुखी हो कर पढ़ाई छोड़ने का विचार आया परन्तु अपने पिता को कड़ा परिश्रम करते देख अपने परिवार की स्थिति को सुधारने के लिए आगे की पढ़ाई जारी रखी। उन्होंने “दक्षिणा फाउंडेशन” पुणे की प्रवेश परीक्षा दी जिसमे उनके अच्छे नंबर के साथ दाखिला हुआ। आगे की 11वीं-12वीं की परीक्षा में भी काफी अच्छे नंबरो से पास की और साथ साथ ही मेडिकल एंट्रेंस की भी तैयारी में लगे रहे। इसी साल मेडिकल एंट्रेंस का एग्जाम दिया और एम्स में वह चुने गए।

मुख्यमंत्री जी का तोहफा।

उनकी इस सफलता के बारे में मध्यप्रदेश के मुख्यमंत्री शिव चौहान को सोशल मीडिया के जरिये संज्ञान में आया। उन्होंने आशाराम की पारिवारिक परेशानी को समझते हुए व बधाई देते हुए एक ट्विटर पर ट्वीट भी किया।

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उन्होंने ट्वीट में कहा, “इस तरफ ध्यान दिलाने के लिए धन्यवाद। मैंने देवास के कलेक्टर से तुरंत आर्थिक मदद उपलब्ध कराने के लिए कहा है और वह अब आशाराम के संपर्क में हैं। आशाराम मेधावी विद्यार्थी योजना के पात्र हैं और हम उनकी फीस भरेंगे। मैं उससे खुद बात करूंगा और इस सफलता के लिए उन्हें बधाई दूंगा।””

आशा राम की खुशियों में बढोतरी तब हुई जब मुख्यमंत्री जी ने कुछ समय बाद दुबारा ट्वीट कर के लिखा “मुझे पता चला कि आशाराम के पास पक्का मकान भी नहीं है और उनके पास शौचालय और बिजली की सुविधा तक नहीं है। हम उन्हें कई सरकारी योजनाओं के तहत यह सारी सुविधाएं देने वाले हैं।”

आशाराम को वहाँ के कलेक्टर ने अपने ऑफिस में बुलाकर आर्थिक मदद का प्रमाणपत्र भी दिया।

साथ ही AIIMS ने भी उनकी मदद करने के लिए आगे आई और MBBS की पढ़ाई, प्रैक्टिकल लैब के लिए Lab Court, पढ़ाई के लिए फ़ीस कम करने के लिए और जरूरी किताबों की व्यवस्था की।

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“जहां चाह वहां राह” की कहावत को आशाराम ने साबित करके दिखा दिया कि मेहनत और सफलता के लिए किसी भी सुविधाओं का होना जरूरी नहीं होता है।

 


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